पश्चिम बंगाल: जीत के बाद बंगाल की राजनीति पर TMC का दबदबा

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पश्चिम बंगाल: जीत के बाद बंगाल की राजनीति पर TMC का दबदबा

बंगाल। पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में जीत के बाद बंगाल की राजनीति पर टीएमसी (TMC) का दबदबा बना हुआ है. फरवरी में बंगाल में 108 नगरपालिकाओं के चुनाव (West Bengal Municipal Election) हैं. चुनाव के पहले टीएमसी में एक ओर उम्मीदवारों को लेकर जंग छिड़ी हुई है, तो दूसरी ओर विधानसभा चुनाव के बाद आपसी तकरार और मतभेद से जूझ रही बीजेपी को अपनी साख बचाने की चुनौती है. वहीं, चुनाव के बाद हाशिए पर पहुंची कांग्रेस और लेफ्ट पार्टियों के लिए यह अपने अस्तित्व बचाने की लड़ाई है. सभी पार्टियां चुनाव प्रचार में अपनी पूरी ताकत झोंक रही है. इन चुनावों में बीजेपी सहित विरोधी पार्टियों टीएमसी के अत्याचार, कुशासन, पार्टी नेताओं में भ्रष्टाचार और सिंडिकेटराज सहित स्थानीय मुद्दे बिजली, पानी और निकासी को अपना मुद्दा बना रही है. वहीं, टीएमसी विकास को मुद्दा बनाते हुए बीजेपी और केंद्र सरकार की नीतियों पर निशाना साध रही है, तो दूसरी ओर, राष्ट्रीय राजनीति में विस्तार की टीएमसी रणनीति बना रही है और गोवा में विधानसभा चुनाव लड़ रही हैं. ममता बनर्जी मंगलवार को यूपी में सपा के पक्ष में चुनाव प्रचार करेंगी.

बता दें कि पिछले विधासनभा चुनाव में बीजेपी ने टीएमसी को करारी चुनौती दी थी, लेकिन चुनाव में ममता बनर्जी की सरकार तीसरी बार सरकार बनाने में कामयाब रही, लेकिन चुनाव के बाद बीजेपी में भगदड़ मची है और बीजेपी के पांच विधायक टीएमसी में शामिल हो चुके हैं. हाल में पार्टी कार्यकारिणी को लेकर भी बीजेपी नेताओं में तकरार मची हुई है.पश्चिम बंगाल पर लेफ्ट पार्टियों का 34 सालों तक शासन रहा था. साल 2011 में ममता बनर्जी ने लेफ्ट को करारी शिकस्त दी थी और राज्य में मां, माटी, मानुष का शासन स्थापित किया था. उसके बाद से टीएमसी लगातार तीन विधानसभा चुनाव जीत चुकी हैं और लेफ्ट की तरह ही बंगाल के गली-गली में टीएमसी की पकड़ है. प्रत्येक इलाके में टीएमसी का पार्टी कार्यालय है और उससे वह इलाके को नियंत्रित करती है. बीजेपी के उपाध्यक्ष संजय सिंह का कहना है कि टीएमसी अत्याचार और भय की राजनीति करती है. विरोधी दल के नेताओं और समर्थकों को डराया और धमकाया जाता है. चुनाव भी निष्पक्ष नहीं होते हैं. निकाय चुनाव में भी यही आशंका है कि निष्पक्ष चुनाव नहीं होंगे. यदि निष्पक्ष चुनाव होंगे, तो चुनाव परिणाम अलग होगा, लेकिन इसकी संभावना बहुत ही कम है.साल 2006 में जब तत्कालीन वाम मोर्चा सरकार ‘सिंडिकेट्स’ लेकर आई थी, तो वो कोलकाता के एक उपनगर में, बेगोज़गारी से निपटने का एक प्रयास था.सरकार उस समय राजरहाट न्यूटाउन को विकसित कर रही थी, और सिंडिकेट्स को- जिसमें उन परिवारों के युवक शामिल थे, जिनकी ज़मीन उस परियोजना में चली गई थी- बिल्डर्स को निर्माण सामग्री सप्लाई करनी थी. लेकिन, समय के साथ ये सिंडिकेट्स संगठित होकर, भ्रष्टाचार और जबरन वसूली करने वाले रैकेट्स में तब्दील हो गए हैं, जो पश्चिम बंगाल में जीवन के हर क्षेत्र, खासकर निर्माण और मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्रों में नज़र आते हैं. बीजेपी युवा मोर्चा के अध्यक्ष डॉ इंद्रनील खान कहते हैं कि टीएमसी के कमरहाटी विधायक मदन मित्रा ने खुद टीएमसी सांसद सौगत रॉय पर कामरहाटी में प्रमोटर राज को गलत उद्देश्यों के लिए संरक्षण देने का आरोप लगाया है, जिसके परिणामस्वरूप अवैध निर्माण हुए हैं. हम सब यही कहते रहे हैं! बंगाल के रियल एस्टेट सेक्टर में सिंडिकेट, बिल्डिंग माफिया का दबदबा है. बीजेपी के आरोप सही हैं.

पश्चिम बंगाल के चुनाव में हिंसा एक कटु सच में परिणत हो गया. विधानसभा चुनाव के बाद पीएम नरेंद्र मोदी से लेकर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह हिंसा के मुद्दे को उठाते रहे थे. चुनाव के बाद हिंसा के मामले की जांच हाईकोर्ट के आदेश पर सीबीआई कर रही है. राज्यपाल जगदीप धनखड़ भी हिंसा और भ्रष्टाचार के मुद्दे पर लगातार ममता सरकार पर हमला बोलते रहते हैं और इसे लेकर राज्यपाल और ममता बनर्जी के बीच प्रत्येक दिन तकरार होती है. राज्यपाल कई बार कह चुके हैं कि बंगाल में कानून का शासन नहीं है और बंगाल में चुनाव के दौरान हुई हिंसा का गवाह पूरा देश रहा है. यहां प्रजातांत्रिक व्यवस्था का गला घोटा जा रहा है, हालांकि ममता बनर्जी सहित टीएमसी के नेता इन आरोपों को पूरी तरह से खारिज करते हैं. टीएमसी के महासचिव पार्थ चटर्जी का कहना है कि बंगाल की जनता को ममता बनर्जी पर पूरा विश्वास है और राज्यपाल एक पार्टी के प्रवक्ता के रूप में काम कर रहे हैं और अपनी मर्यादा का उल्लंघन कर रहे हैं. पार्टी उनके खिलाफ अगले विधानसभा सत्र के दौरान निंदा प्रस्ताव लाएगी. ममता बनर्जी पीएम मोदी से उन्हें हटाने की मांग कर चुकी हैं.

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