जंगल के दोस्त Jim’s Birthday: आदमखोर जानवरों का शिकार करने में थे माहिर

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देहरादून। पर्यावरण और वन्यजीव प्रेमियों के लिए आज का दिन सबसे खास है क्योंकि आज के दिन दुनिया के एक ऐसे मशहूर शिकारी का जन्म हुआ था जिसने सैड़कों आदमखोर जानवरों का शिकार कर लोगों की जिंदगियां बचाई थी। बताया बताया जाता है कि इस शिकारी ने 18वीं से लेकर 19वीं शताब्दी तक न सिर्फ आदमखोर बाघों और गुलदारों का शिकार किया, बल्कि लोगों को पर्यावरण का पाठ भी पढ़ाया। जी हां हम बात कर रहे हैं मशहूर शिकारी जिम कॉर्बेट का, जिनका उत्तराखंड से खास नाता था। इनके उनके नाम पर ही साल 1936 में भारत का पहला नेशनल पार्क बनाया गया था। इस शिकारी ने सिर्फ 50 से अधिक आदमखोर बाघों का शिकार किया थाबल्कि 250 से ज्यादा तेंदुओं को भी मौत के घाट उतारा था।

jim corbett birthday

आज जिम कॉर्बेट का 147वां जन्म दिन है। आज ही के दिन यानी 25 जुलाई 1875 को नैनीताल में रहने वाले एक परिवार में जिम कॉर्बेट का जन्म हुआ था। जिम के पिता क्रिस्टोफर कॉर्बेट नैनीताल में पोस्ट मास्टर के पद पर तैनात थे और मां मेरी जैन एक व्यवसायी थीं। बताया जाता है कि जिम, क्रिस्टोफर और मेरी की आठवीं संतान थे। नैनीताल में जन्म और फिर इसी माहौल में पालन पोषण होने की वजह से जिम को शुरुआत से ही प्रकृति से ख़ासा लगाव हो गया था। बड़े होकर जिम कॉर्बेट ने पहले रेलवे और फिर ब्रिटिश आर्मी में काम किया।

जिम ब्रिटिश आर्मी में कर्नल रैंक के ऑफिसर पद पर रहे। जिम कार्बेट ने 40 साल की उम्र यानी वर्ष 1915 में कालाढूंगी के पास छोटी हल्द्वानी नाम के गांव में लगभग 40 एकड़ जमीन खरीदी। उस वक्त इस भूमि की कीमत 1500 रुपये के आसपास थी। जिम ने इसी जमीन के एक हिस्से में साल 1922 में एक बंगला बनवाया। इस बंगले में वह अपनी बड़ी बहन मैगी के साथ जाड़े के दिनों में रहा करते थे। वहीं गर्मी में वे अपनी नैनीताल स्थित कोठी में रहने चले जाते थे। जिम अपने जीवन के आखिरी दिनों में भारत से बाहर चले गए थे। सन 1947 में भारत से कीनिया जाते समय उन्होंने अपनी यह कोठी चिरंजी लाल नाम के शख्स को बेच दी थी। इस कोठी को साल 1965 में चिरंजीलाल से वन विभाग ने खरीद लिया।

सौ साल की हुई जिम कॉर्बेट की कोठी

जिम कॉर्बेट की ये कोठी आज 100 साल की पूरी हो गई है। जिम कॉर्बेट के 147वें जन्मदिन पर आपको बता दें कि उनकी ये कोठी आज म्यूजियम में तब्दील हो चुकी है जिसे कॉर्बेट नेशनल पार्क प्रशासन मैनेज करता है। इस म्यूजियम में जिम कॉर्बेट से जुड़ीं यादगार तस्वीरों के साथ-साथ उनके खाने के बर्तन, जंगल में शिकार करने के दौरान काम आने वाले हथियार, आने-जाने वाली डोली, जिम का फर्नीचर समेत अन्य चीजें संजो कर रखी गई हैं।

बता दें कि जिम कॉर्बेट छोटी हल्द्वानी की जमीन पर खेती भी किया करते थे। खेती के लिए जिम ने 10-15 किसान परिवारों को भी काम पर रखा हुआ था। इस कोठी में रहते हुए उन्होंने कई जंगली जानवरों का शिकार किया, जिनमें कई आदमखोर बाघ भी थे। साल 1947 में भारत के आजाद होने के बाद जिम अपनी खेती वाली जमीन इन्हीं किसान परिवारों में बांटकर कीनिया चले गए। जिम ने अपने जीवन के अंतिम दिन कीनिया में बिताये और कई किताबें लिखीं। इनमें भारत, कुमाऊं और आदमखोर गुलदारों और बाघों की अनगिनत किस्से कहानियां हैं।

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